हम सब जानते है की देवाधि देव महादेव सर्वव्यापी, सर्वत्र है l परन्तु कई ऐसी जगहे भी है जहा भक्तगण कोउस शिवतत्व की ज्यादा ही अनुभूति होती है। ऐसी ही एक जगह है काशी जहाँ भोलेबाबा विश्वनाथ स्वरुप में
विराजते है। जी हाँ हम बात कर रहे है सप्तम ज्योतलिङ्ग विश्वनाथ की।
१२ ज्योतिर्लिंगो में सातवा ज्योतलिंग है विश्वेश्वर जो उत्तर प्रदेश के काशी में स्थित है। वरुणा और अस्सी नदी के संगम पर बसे इस शहर को वाराणसी भी कहा जाता है। पुराणों में इस नगर को अविमुक्त, आनंद, महा स्मशान, मूलभूमि, काशिका, शिवपुरी, रुद्रवास जैसे अनेक नामो से जाना जाता है। कहा जाता है की प्रलयके देवता रूद्र जब समग्र सृष्टि में प्रलय करते है तब भी काशी का विनाश नहीं होता। शिव अपनी प्रिय नगरी काशी को अपने त्रिशूल पर धारण करते है। पुराणों की कथा के अनुसार एक बार श्री हरी विष्णु ने तपस्या के लिए एक उत्तम स्थान की याचना की। और महादेव ने अतिपावन तेजमय नगर पंचकोशी की रचना की । श्री हरी इस पंचकोशी मैं तप करने लगे। महादेव की कृपा और श्री हरी की तपस्या से इस नगर में प्रकृति पूर्णतया खिल गई।जब भगवन शिव श्री हरी को दर्शन दिए तब शिव की भक्ति में लीन श्री हरी विष्णु इतने आनंदित हो उठे के उनकी आँखों से हर्षाश्रु बहने लगे। इस आनंद अश्रु की बाढ़ से काशी समेत सम्स्त सृष्टि डूबने लगी। माता पार्वती की विनती सुनकर भगवान भोले नाथ ने इस पंचकोशी नगरी को अविनश्वरता प्रदान करने के लिए काशी को अपने त्रिशूल की नोक पर धारण कर लिया। और फिर यह वर दिया के प्रलय काल में भी मैं इस नगर को अपने त्रिशूल पर धारण करूँगा।
इस धरा को गौरी शंकर ने ऐसा दिव्य वचन दिया के जो भी जीव इस अविमुक्त क्षेत्र में राम नाम के उच्चारण के साथ देह त्याग करेगा उसके कान में शिव तारक मंत्र कहेगे जिसके प्रभाव से वह जीव भव बंधन से मुक्त हो जायेगा।और इसी लिए मोक्ष दायिनी नगरी काशी में प्राण त्यागने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु के अनुरोध पर जिस लिंग की विष्णु पूजा कर रहे थे वह पर सदाशिव और आदिशक्ति शिवा ने चिरकाल तक वास करने का वचन दिया। और विश्व की रक्षा के लिए विश्वनाथ बन कर ज्योति स्वरुप मैं वास किया। तदुपरांत माता पार्वती भी काशपुराधीश्वरी बनकर अन्नपूर्णा स्वरुप में इसी नगर में विराजित है।
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