पूर्वकाल
में एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से यह प्रश्न पूछा कि स्वामी! किस विधि एवं
व्रत से संतुष्ट होकर आप अपने भक्तों को भोग और मोक्ष प्रदान करते हैं?
तब
सर्वेश्वर शिव बोले- हे देवी! मुझे प्रसन्न करने एवं भोग-मोक्ष प्राप्त करने के
लिए तो अनेकों व्रत हैं। इन सभी व्रतों में शिवरात्रि का व्रत सर्वोत्तम माना गया
है।
इस
दिन प्रातःकाल जल्दी जागें। नित्य कर्म करने के पश्चात शिव मंदिर में जाकर
विधिपूर्वक भगवान शिव का पूजन करने के पश्चात उनसे प्रार्थना करें कि हे नीलकण्ठ!
मैं आज इस शिवरात्रि के उत्तम व्रत को धारण कर रहा हूं। आपसे मेरी कामना है कि आप
मेरे व्रत को निर्विघ्न पूर्ण करें। काम, क्रोध,
शत्रु
आदि मेरा कुछ न बिगाड़ सकें। भगवन्! आप सदा मेरी रक्षा करें। इस प्रकार संकल्प
लें।
रात्रि
के प्रथम प्रहर की पूजा
रात
होने पर पूजन की सभी सामग्री को एकत्रित कर ऐसे शिव मंदिर में जाएं जहां शिवलिंग
की प्रतिष्ठा शास्त्रों के अनुसार की गई हो। शरीर को स्नान से शुद्ध करके स्वच्छ
वस्त्र पहनकर आसन पर बैठकर भगवान शिव का पूजन करें। एक सौ आठ बार शिवमंत्र का
उच्चारण करते हुए जलधारा शिवजी को अर्पित करें। इसी जलधारा से अर्पित की गई
वस्तुओं को नीचे उतारें। तत्पश्चात गुरु मंत्र का जाप करते हुए शिवजी को काले तिल
चढ़ाएं। भव, शर्व, रुद्र,
पशुपति,
उग्र
भीम, महान, भीम,
ईशान
नामक आठ शिव नामों का उच्चारण करते हुए कमल और कनेर के फूल शिवजी पर चढ़ाएं। फिर
धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित कर उन्हें नमस्कार
करें। जप हो जाने पर धेनुमुद्रा दिखाकर जल से उसका तर्पण करें।
रात्रि के दूसरे प्रहर की पूजा
रात्रि
का दूसरा पहर होने पर पुनः शिवलिंग पर गंध, पुष्प
आदि द्रव्यों द्वारा सर्वेश्वर शिव का पूजन करें। दो सौ सोलह शिव मंत्र का जाप
करते हुए पार्थिव लिंग पर जल धारा चढ़ाएं। तिल, जौ,
चावल,
बेलपत्र,
अर्घ्य,
बिजौर
आदि वस्तुओं से पूजन करना चाहिए। तत्पश्चात खीर का नैवेद्य अर्पित करें तथा पुनः
शिव मंत्र का जाप करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और संकल्प करें। फल और फूल
अर्पित कर उसका विसर्जन करें।
रात्रि
के तीसरे प्रहर की पूजा
तीसरे
पहर में ही विधि-विधान से पूजन करें परंतु इस पहर में जौ की जगह गेहूं और आक के
फूलों से पूजन करें। पूजन के पश्चात कपूर से आरती करें। अर्घ्य के रूप में अनार
अर्पित करें। फिर ब्राह्मण को भोजन कराएं और संकल्प लें।
रात्रि
के चौथे प्रहर की पूजा
चौथा
प्रहर आरंभ होने पर शिवजी का आवाहून करके उड़द, कंगनी
मूंग व सात धातुओं, शंख फूल एवं बिल्व अदि को
मंत्र जाप करते हुए अर्पित करें। तत्पश्चात केले एवं अन्य फल मिष्ठान अर्पित करें
और जप करें। फिर सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों क भोजन कराने का संकल्प करें।
सूर्योदय तक उत्सव करें। फिर स्नान करके भगवान शिव का पूजन करें। तत्पश्चात संकल्प
किए हुए ब्राह्मणों को बुलाकर भोजन कराएं, फिर
शिवजी से प्रार्थना करें।
हे
दयानिधान! कृपानिधान! देवाधिदेव भगवान शिव ! मैंने जाने-अनजाने आपकी भक्ति में
तत्पर हो आपका व्रत और पूजन किया है। आप मुझ पर कृपा कर इस पूजन को स्वीकार करें।
हे प्रभु! मैं चाहे जहां भी रहूं मेरी भक्ति सदा आप में रहें,
यह
कहकर पुष्पांजलि अर्पित कर ब्राह्मण को तिलक लगाएं और उसके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद
लें। इस प्रकार विधिपूर्वक किए गए शिवरात्रि के व्रत का बहुत अधिक माहात्म्य है।
इस
व्रत से शिवजी के सान्निध्य की प्राप्ति होती है और मोक्ष पाकर वह मनुष्य सांसारिक
बंधनों से छूट जाता है।
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