भगवान जगन्नाथ के रथ से जुड़ी रोचक बातें !!!!

 

  



भारत की उन्ही बेजोड़ परम्पराओ में से एक है भगवान् की नगर चर्या।  भारत के कई प्राचीन मंदिरो के गर्भ गृह से भगवान् अपने नगरवासिओ को दर्शन देने हेतु नगरचर्या पर निकलते है। सभी मंदिरो में से भगवान् की चलित प्रतिमा या उत्सव विग्रह नगर चर्या करती है। पर भगवान् जगन्नाथ जी की गर्भ गृह की प्रतिमा स्वयं नगर भ्रमण के लिए निकलती है।  जो अपने आपमें एक अनूठी बात है। 

   रथयात्रा से पहले  क्या  तैयारी होती है ?

भगवान् जगन्नाथजी, भैया बलदेव जी और बहन सुभद्रा जी के साथ हर साल आषाढ़ मास की द्वितीय को नगर भ्रमण करते है। इस उत्सव की तैयारियां अक्षय तृतीया से ही शुरू हो जाती है। आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की द्वितीय को भगवान् जगन्नाथजी, बलदेवजी और  सुभद्रा जी को पवित्र जल एवं सुगन्धित द्रव्यों से स्नान की भावना की जाती है और उसके बाद तीनो भाई बहन को खास वस्त्रो से सजाया जाता है। सुशोभित मूर्ति ओ को विशाल मुकुट पहनाये जाते है जिससे दूर से भी श्रद्धालु भगवान् के दर्शन कर सके। तत्पश्चात विशेष भक्तिभाव और श्रद्धा से भगवान् की आरती की जाती है क्यों की भगवन ननिहाल को जा रहे है और वही पर कुछ दिन रहने वाले है।

४४ फिट ऊँचे रथ को भगवान् के आने की प्रतीक्षा होती है। रथ को पवित्र जल एवं सुगन्धित द्रव्यों से शुद्ध किया जाता है।  पुजारिओं का एक दल रथ का पूजन करता है। रथ पर कलश स्थापना और ध्वजारोहण  किया जाता है। इस प्रक्रिया को पहिंद विधि कहा जाता है। सबसे पहले सुदर्शन जी को बाद में भैया बलभद्र और बहन सुभद्रा को और उसके बाद जगन्नाथजी को रथ में बिठाया जाता है। शंख, ढोल नगाड़े के ध्वनि से पूरा वातावरण भक्तिरस में डूब जाता है। जय जगन्नाथ के जयघोष के साथ तीनो भाई बहन और सुदर्शन जी अपना स्थान लेते है।



रथ को आगे बढ़ाने से पहले ख़ास छेरा पहारा की विधि की जाती है।  चांदी की पालकी में सवार होकर पूरी के महाराज का आगमन होता है। महाराज सोने के झाड़ू से भगवान् के रथ को स्वच्छ करते है। और उसके बाद लकड़ी के अश्वो को रथ से जोड़ा जाता है। वैदिक मंत्रो और जय जगन्नाथ के जयघोष के साथ रथयात्रा का आरम्भ होता है। 

बड़े ही भक्तिमय माहौल में यात्रा निकलती है। दूर सुदूर से और विदेश से लाखो की संख्या में लोग जगन्नाथजी की रथयात्रा में शामिल होने के लिए आते है। माना जाता है की जो भी भगवान् जगन्नाथजी, बलभद्र जी या सुभद्राजी के रथ का स्पर्श कर लेता है या रथ को खींचता है वो मोक्ष प्राप्त कर लेता है। भगवान् किसी भी भेदभाव के बिना भक्तो को दर्शन देते है।

जगन्नाथजी मंदिर से तीन किलोमीटर की दुरी पर पुरुषोत्तम भगवान् का ननिहाल यानि की गुंडिचा मंदिर है।  वह भगवान् अपने भाई बहन के साथ १० दिनों तक रुकते है।  दसवे दिन तीनो भाई बहन वापस निजमंदिर में स्थान लेते है। 

रथयात्रा एक अलौकिक और अनूठा अनुभव है। आप सब घर बैठे इस अद्भुत अनुभव की छोटी सी झांकी प्राप्त कर सके तो हमारा प्रयास सफल रहा ऐसा मानेंगे।  कॉमेंट बॉक्स में जय जगन्नाथ जी जरूर लिखना। भगवान् सबकी मनोकामना पूर्ण करे ऐसी प्रार्थना l 

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